मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को दत्तोदय जयंती मनाई जाती है. मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था. भगवान दत्त के बारे में कई मान्यताएं हैं. कुछ ग्रंथों में उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, तो कुछ में उन्हें त्रिदेव का संयुक्त अवतार माना जाता है. हमारे देश में भगवान दत्तात्रेय के कई प्राचीन मंदिर हैं. जो 500 से 700 साल पुराना है. दत्तात्रेय जयंती पर यहां कई विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. दत्तात्रेय जयंती (14 दिसंबर, शनिवार) के मौके पर आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्राचीन मंदिरों के बारे में…
धर्म /अध्यात्म
संतान प्राप्ति के लिए रखे पुत्रदा एकादशी व्रत, जानें पूजा की विधि…
पौष मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत 10 जनवरी शुक्रवार को है. यह नए साल 2025 की पहली एकादशी है. इस दिन विधि-विधान से भगवान नारायण की पूजा और व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. मरने के बाद मोक्ष भी मिलता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा सुकेतुमा ने ऋषि मुनि द्वारा बताई गई व्रत विधि के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत और पूजा की. जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई और जीवन के अंत में उन्हें मोक्ष भी प्राप्त हुआ. भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया. जो भी दंपत्ति पुत्र या संतान की कामना रखते हैं उन्हें सुबह स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाना चाहिए. उसके बाद पौष पुत्रदा एकादशी व्रत और पूजन का संकल्प करना चाहिए.
पौष पुत्रदा एकादशी
वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष पुत्रदा एकादशी के लिए आवश्यक पौष शुक्ल एकादशी तिथि का शुभारंभ 9 जनवरी को दोप. 12.22 बजे से हो रहा है. यह तिथि 10 जनवरी को सुबह 10.19 बजे पर खत्म होगी. उदयातिथि के अनुसार व्रत 10 जनवरी को रखा जाएगा.
पूजा की विधि
इस दिन फलाहार व्रत करना चाहिए. किसी शुभ मुहूर्त में एक चौकी पर भगवान नारायण की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद उन्हें पंचामृत स्नान कराएं. उन्हें पीला वस्त्र अर्पित करें. अब आप चंदन, माला, पीले फूल, अक्षत, तुलसी के पत्ते, प्रसाद, फल, मिठाई, दीपक आदि चढ़ाकर पूजा करें. पूजा के दौरान ओम नमो भगवत वासुदेवाय मंत्र का जाप करें. पूजा के दौरान विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का पाठ करें या सुनें.
मुस्लिम बढ़ते गए तो मंदिर से भगवान की मूर्तियों के साथ पलायन कर गए हिन्दू!
मुजफ्फर नगर। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में एक शिव मंदिर मिला है। ये शिव मंदिर 1970 में बना था, लेकिन कभी हिंदू बाहुल्य रहे इस इलाके में मुस्लिमों की संख्या बढ़ती गई और हिंदुओं को पलायन करना पड़ा और मंदिर पूरी तरह से खहंडर बन गया। अब फिर से इस शिव मंदिर पर प्रशासन की नजर पड़ी है। वहीं, संभल में एक और प्राचीन कुआँ मिला है, जिसकी खुदाई शुरू कर दी गई है। बताया जा रहा है कि ये कुआँ भी पौराणिक महत्व का है।मुजफ्फरनगर में शिव मंदिर की दुर्दशा, हिंदुओं ने किया था पलायन मुजफ्फरनगर जिले के नगर कोतवाली क्षेत्र में मोहनलाल लद्दावाला मोहल्ले में 54 साल पहले एक शिव मंदिर की स्थापना हुई थी। उस समय यह क्षेत्र हिंदू बाहुल्य था, लेकिन बाद में जब 90 के दशक में अयोध्या राम मंदिर का आंदोलन तेज होने के बाद यहाँ की परिस्थितियाँ बदल गईं। दंगों और बढ़ती मुस्लिम आबादी के चलते हिंदू समाज के लोग इस इलाके से पलायन कर गए। इसके साथ ही, इस मंदिर से भगवान शिव की मूर्ति और अन्य धार्मिक प्रतीक भी हटा लिए गए। अब यह मंदिर खंडहर बन चुका है।
इस शिव मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हुए इलाके से पलायन कर चुके परिवार के सदस्य भाजपा नेता सुधीर खटीक ने कहा कि 1970 में मंदिर की स्थापना हुई थी। यहाँ नियमित पूजा-अर्चना होती थी, लेकिन 1990 के बाद जब मुस्लिम आबादी बढ़ी, तो हालात बदलने लगे। मोहल्ले में मीट की दुकानें खुलने लगीं और सांप्रदायिक माहौल बिगड़ गया। ऐसे में हिंदू परिवारों ने मंदिर की मूर्तियाँ हटा दीं और दूसरी जगह स्थापित कर लीं।
आज मंदिर पर आसपास के लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। किसी ने छज्जे बढ़ा लिए, तो किसी ने पार्किंग बना ली। सुधीर खटीक का कहना है कि सरकार को इस मंदिर की पुनर्स्थापना करनी चाहिए। उनका मानना है कि धर्म और संस्कृति की सुरक्षा ही राष्ट्र की सुरक्षा का आधार है।
दत्तात्रेय जयंती आज: 500 से 700 साल पुराने हैं भगवान दत्तात्रेय के 4 मंदिर, जिनमें से एक रायपुर में भी है….
इंदौर के कृष्णपुरा की ऐतिहासिक छतरी के पास भगवान दत्तात्रेय का 700 साल पुराना प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर में जगद्गुरु शंकराचार्य भी रुके थे. मराठाशाही बखर (मोदी भाषा) में सरस्वती और चंद्रभागा नदियों के संगम पर भगवान दत्तात्रेय के मंदिर का वर्णन मिलता है. गुजरात के तिलकवाड़ा इलाके में स्थित भगवान दत्त मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. इसे गरुड़ेश्वर दत्त मंदिर कहा जाता है. यह मंदिर नर्मदा के तट पर स्थित है. मान्यता है कि भगवान दत्त स्वयं प्रतिदिन नर्मदा नदी में स्नान करने आते हैं. यह भी कहा जाता है कि यदि कोई यहां लगातार 7 सप्ताह तक गुड़ और मूंगफली चढ़ाता है, तो उसकी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं. काशी के ब्रह्मघाट पर भगवान दत्तात्रेय का प्राचीन मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. यहां कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय के दर्शन से कई तरह के रोग दूर हो जाते हैं. यह मंदिर 300 साल से भी ज्यादा पुराना है. यह उत्तर भारत में भगवान दत्तात्रेय का एकमात्र मंदिर है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के ब्रह्मपुरी में श्री दत्तात्रेय भगवान का मंदिर करीब 700 साल पुराना है. मान्यता है कि जो भी भक्त यहां आकर भगवान दत्तात्रेय के सामने अपने दिल की इच्छा कहता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है. यही कारण है कि यहां प्रतिदिन हजारों लोग भगवान दत्तात्रेय के दर्शन के लिए आते हैं.
इंदौर
गुजरात
काशी
रायपुर
काल भैरव जयंती : रतनपुर के सिद्ध तंत्र पीठ भैरव मंदिर में होगा राजश्री श्रृंगार
बिलासपुर। हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती का बड़ा धार्मिक महत्व है. इस शुभ दिन पर साधक भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव जी की पूजा करते हैं. वैदिक पंचांग के अनुसार, काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. रतनपुर स्थित सिद्ध तंत्र पीठ भैरव मंदिर में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को भैरव बाबा की जयंती श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाई जा रही है.
भैरव बाबा का सुबह एक क्विंटल गेंदे के फूल व नरमुंड के माले से शृंगार होगा. राज्योपचार, नमक-चमक विधि से बाबा की विशेष पूजा-अर्चना 21 दैदिक पंडितों के द्वारा किया गया. साथ ही भैरव बाबा को 56 प्रकार के भोग लगाए जाएंगे. फिर महाआरती की जाएगी. इसके बाद भक्तों के दर्शन के लिए बाबा पट रात भर खुला रहेगा.
मंदिर के महंत पं. जागेश्वर अवस्थी ने बताया कि 9 दिवसीय कार्यक्रम चल रहा है. 9 दिनों तक रुद्राभिषेक किया जा रहा है. रात में बाबा को तंत्र साधना के साथ आहुतियां डाली जा रहीं हैं. पूरे दिन मंदिर आने वाले भक्तों के लिए भंडारे का आयोजन किया जा रहा है. महंत अवस्थी ने बताया कि बाबा के दर्शन के लिए प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग पहुँचेंगे.
भैरव जयंती पर बाबा की होगी राजश्री श्रृंगार
काल भैरव जी का राजश्री श्रृंगार किया जाता है, जिसमें खास नरमुंड के माले विभिन्न प्रकार के फूलों से श्रृंगार किया जाता है, जिससे अति आकर्षक और दिव्य रूप में भैरव श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं. नगर सहित प्रदेश भर में भैरव भक्तों में को भैरव जयंती का इंतजार रहता है. प्रदेश भर से भैरव भक्त पहुंच कर कामनाओं की पूर्ति के लिए बाबा से प्रार्थना करते है.
पूजन में पं. दिलीप दुबे, पं. महेश्वर पाण्डेय, पं. राजेंद्र दुबे, पं. कान्हा तिवारी विक्की अवस्थी, सोनू, आचार्य गिरधारी लाल पाण्डेय, पं. अवनीश मिश्रा, पं. बल्ला दुबे, पं. गौरीशंकर तिवारी, पं. राम सुमित तिवारी, यशवत पाण्डेय, करा रहे हैं.
गोवर्धन पूजा में भगवान के भोग में जरूर शामिल करें ये चीजें
गोवर्धन पूजा 2024: सनातन शास्त्रों में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है. हर साल की तरह इस साल भी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा. इसके एक दिन बाद भाई दूज मनाया जाएगा. गोवर्धन पूजा के दिन पूरे विधि-विधान से जगत के पालनहार भगवान, गोवर्धन पर्वत धारी, बांकेबिहारी, नंदलाल और अनगिनत नामों से पुकारे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण और अपनी एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाने वाले गोवर्धन पर्वत की पूजा होती है. भगवान को 56 भोग लगाया जाता है.
गोवर्धन पूजा के दिन पर श्रीकृष्ण को माखन मिश्री का भोग लगाएं. इससे अलावा और भी बहुत सी चीजें हैं जो भगवान के भोग में जरूर शामिल करना चाहिए.
भोग में कढ़ी चावल को करें शामिल
भगवान को 56 भोग में कढ़ी-चावल को जरूर शामिल करें. यह भगवान का सबसे पसंदीदा भोग में से एक है. ऐसी मान्यता है कि कढ़ी चावल और अन्नकूट का भोग साधक को सफलता देता है. भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं.
56 भोग में इन्हें भी शामिल करें
56 भोग की प्रसादी में खीर, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, जीरा-लड्डू, मालपुआ को भी शामिल करें. ये सभी भगवान को बहुत प्रिय हैं. इस भोग में पेड़ा, काजू-बादाम बर्फी, पिस्ता बर्फी, पंचामृत, गोघृत, शक्कर पारा, मठरी को भी जोड़ लें। ये सभी चीजों नेचुरल होती हैं और कल्याणकारी मानी गई हैं.
दिवाली 2024: मनोकामना पूरे करने के लिए मां लक्ष्मी के इन मंत्रों और स्त्रोत का करें जाप…
दिवाली 2024: दिवाली के दिन विधिपूर्वक पूजा और पाठ करने से व्यक्ति को माता लक्ष्मी और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं. कहते हैं दिवाली के दिन भक्ति भाव से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती हैं. धर्म ग्रंथों में धन की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने केलिए मंत्रों का जाप करने का विधान बताया गया है. माता के अलग-अलग मंत्रों के जापसे धन वैभव की प्राप्ति होती हैं. इन मंत्रों और स्त्रोतों का जाप दिवाली पूजा के समय करने से मनोकामनाएं पूरी होती है।
दिवाली की पूजा में करें इन महा-मंत्रो और स्त्रोतों का जाप
मां लक्ष्मी के वैदिक मंत्र
- सुख-समृद्धि के लिए – ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः
- श्री लक्ष्मी महामंत्र – ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा.
- जीवन में सफलता के लिए – ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
- धन प्राप्ति के लिए – ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः
श्री सूक्तम् स्त्रोत
महालक्ष्मी अष्टकम्
अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्
कनकधारा स्तोत्रम्
धनदालक्ष्मी स्तोत्रम्
कृष्ण लला को अति प्रिय है मुरली, यहां जाने मुरली के उपाय जिससे घर और कार्यस्थल पर आएगी सुख-समृद्धि
नई दिल्ली। सोमवार को दुनियाभर में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा। भक्त अपने भगवान के जन्मोत्सव मनाने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, आतुर हैं। यूं तो कृष्ण के अनेको नाम हैं। मगर, इन नामों में एक नाम है मुरलीधर या मुरलीवाले या मुरली मनोहर। मुरली, कान्हा को बहुत प्रिय है। उनकी मुरली की धुन में तो गोकुल झूम उठता था। क्या मनुष्य, क्या जीव-जंतु, सब मुरली की धुन में मंत्रमुग्ध होकर झूमते थे। । कहते हैं- कान्हा की मुरली से मुरझाए फूल खिल उठते थे। हरियाली छा जाती थी। लोग भूख-प्यास, घर-द्वार भूलकर, बस मुरली की धुन में रम जाते थे। जन्माष्टमी के अवसर आप मुरली के उपाय कर लें तो जिंदगी में खुशहाली आते देर नहीं लगेगी।
मुरली के 4 शुभ उपाय
मुरली को द्वार पर लटकाएं
अगर, आप मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं, तो अपने घर और कार्यस्थल के मुख्य द्वार पर 2-2 मुरली लटका लें।ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां भाग जाएंगी व सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह होगा।
मुरली बनाती है बिगड़े काम
काफी प्रयासों के बावजूद अगर कर्ज कम नहीं हो रहा, नौकरी लगने में बाधा आ रही हो तो उसे घर के मंदिर में एक मुरली लटका देनी चाहिए। इससे बिगड़े काम बनने लगते हैं।
तंगी के दिन दूर होंगे
अगर, आप आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, तो जन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर शाम के समय कान्हा जी की विधिवत पूजा करें। मुरली भेंट करें। ऐसा करने कान्हा बहुत प्रसन्न होते हैं। जातक की सारी मुसीबतों को हर लेते हैं।
बच्चे के कमरे में लगाएं
अगर, बच्चे पढ़ाई में रूचि नहीं ले रहे हैं तो सोते समय उनके तकिये के नीचे रखें या कमरे के दरवाजे पर मुरली टांग दें। इसका सकारात्मक प्रभाव बहुत जल्द देखने को मिलेगा। इन उपायों को करके देखिए।
इस बार जन्माष्टमी पर बन रहा है द्वापर युग वाला शुभ संयोग, इसी मुहूर्त में करें कान्हा जी की पूजा, मिलेगा कई गुना अधिक फल
आज देशभर में कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इस बार जन्माष्टमी पर बेहद ही शुभ और दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषों के अनुसार, ऐसा योग भगवान कृष्ण के जन्म के समय था। ऐसे में इस योग में जन्माष्टमी की पूजा करने से भक्तों को कई गुना अधिक फल मिलेगा। बता दें कि हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाई जाती है। तो आइए जानते हैं भगवान कृष्ण की पूजा के लिए आज कौनसा मुहूर्त सबसे शुभ और फलदायी रहेगा।
जन्माष्टमी 2024 पर बन रहे हैं ये शुभ योग
आज जन्माष्टमी पर द्वापर युग जैसा योग बन रहा है। इस साल चंद्रमा वृषभ राशि में और रोहिणी नक्षत्र में होगा, ठीक वैसे ही जैसे द्वापर युग में भगवान कृष्ण के जन्म के समय था। मान्यताओं के अनुसार, कान्हा जी के जन्म के समय भी चंद्रमा वृषभ राशि में विराजमान थे। इसके अलावा आज जन्माष्टमी के दिन सर्वाथ और जयंती योग भी बन रहा है। कहा जाता है कि जयंती योग में व्रत करने से अक्षय पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जन्माष्टमी सोमवार के दिन होने की वजह से और भी खास है।
जन्माष्टमी 2024 शुभ मुहूर्त
- रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ- 26 अगस्त 2024 को दोपहर 3 बजकर 55 मिनट से
- रोहिणी नक्षत्र समाप्त- 27 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 38 मिनट पर
- जन्माष्टमी की पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त- 26 अगस्त की मध्यरात्रि 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक
- ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 27 मिनट से सुबह 5 बजकर 12 मिनट तक
- अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक
- सर्वार्थसिद्धि योग- 26 अगस्त 2024 को दोपहर 3 बजकर 55 मिनट से कल सुबह 5 बजकर 39 मिनट तक
सावन का अंतिम सोमवार आज, शिवालयों में बम-बम भोले की गूंज, भक्तों का लगा तांता…
रायपुर। श्रावण माह के अंतिम सोमवार को ‘संपूर्णता’ का प्रतीक माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. सुबह से ही शिवालयों में बम-बम भोले की गूंज है, भक्तों की भारी भीड़ मंदिरों में देखी जा रही है. आज रक्षाबंधन का त्योहार है, ऐसे में हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव को जल के साथ राखी भी अर्पित कर रहे हैं.
यदि आप सावन के चार सोमवार को भगवान शिव का जल अभिषेक नहीं कर पाए हैं तो आज आपके लिए अच्छा मौका है. इस दिन भगवान शिव के भक्त मंदिरों में जाकर शिव पूजा व शिवलिंग पर जलाभिषेक कर भगवान आशुतोष का आशीर्वाद लें. सोमवार को श्रावण मास का आखिरी सोमवार है. आज सभी शिवालयों में भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जा रहा है तथा भगवान शिव पर पुष्प, फल, बेलपत्र, पंचामृत अर्पित करते हुए धूप-दीप से भगवान शिव की पूजा अर्चना हो रही है. सोमवार को ही भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व भी मनाया जाएगा. रक्षाबंधन भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शाने के लिए मनाया जाता है. आज पूर्णिमा तिथि भी है.
पूजा विधि
सावन के आखिरी सोमवार के दिन सुबह स्नान के बाद शिव जी का ध्यान लगाएं. शिव जी को फूल, बेलपत्र, अक्षत, चंदन और भांग अर्पित करें. फिर शिव मंदिर में जाकर शिव जी का घी और शक्कर से अभिषेक करें. शिव जी के मंत्रों का जाप करें. अंत में सावन सोमवार के व्रत की कथा का पाठ करें और शिव जी की आरती करें. इस दिन शिव जी को उनके प्रिय चीज का भोग लगा सकते हैं.अगर आप भी सावन के आखिरी सोमवार में शिव जी को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो आप उनके लिए भोग में आप दूध की बर्फी बना सकते हैं.
मां शैलपुत्री का होता है नवरात्रि का पहले दिन, पर्वतों की रानी के रूप में होती है पूजा …
नवरात्रि का पहला दिन, जिसे ‘प्रथमा’ या ‘प्रतिपदा’ के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म में बड़ी ही महत्वपूर्ण घटना है. यह नौ दिनों तक चलने वाले पावन त्योहार की शुरुआत होती है, जिसमें भगवान दुर्गा की पूजा की जाती है. इस साल नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल यानी आज से हो गई है. यह नौ दिनों तक चलने वाले उत्सव में प्रत्येक दिन की अलग महत्वपूर्णता होती है. प्रथमा के दिन को भगवान दुर्गा की आराधना किया जाता है, जो मां शैलपुत्री के रूप में पूजनीय हैं. मां शैलपुत्री का अर्थ है ‘पर्वत रानी’, और वह पर्वतों की रानी के रूप में पूजनीय होती हैं.
प्रतिपदा के दिन, लोग घरों और मंदिरों में भगवान दुर्गा की मूर्ति की पूजा और अर्चना करते हैं. सुबह से ही, लोग मंदिरों में आकर विशेष रूप से प्रात: कालीन पूजा करते हैं. यह दिन माता शैलपुत्री की पूजा और वंदना के साथ बीतता है.
नवरात्रि के प्रथम दिन को लोग ध्यान और आध्यात्मिकता में भी लगाते हैं. वे माता शैलपुत्री की कथा सुनते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का आदान-प्रदान करते हैं. इस अवसर पर सभी लोग मिल-जुलकर धर्मिक कार्यों में लगते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं. खासकर, युवा लोग नवरात्रि के प्रारंभिक दिनों में संगीत और नृत्य की विविधता का आनंद लेते हैं.
नवरात्रि के पहले दिन को धर्म और आध्यात्म की शुरुआत के रूप में मनाने का महत्वपूर्ण संदेश है. यह दिन लोगों को आध्यात्मिकता और प्रेम की ओर दिशा देने का अवसर प्रदान करता है. इस नवरात्रि सभी को मिलकर माता शैलपुत्री की पूजा करना चाहिए और आत्मा की शुद्धि और आत्म-विकास की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए.
काल से रायपुर के देवी मंदिरों में जगमगाएंगी 50 हजार से अधिक जोत
रायपुर। नवरात्र की प्रतिपदा तिथि आठ अप्रैल की रात्रि 11 बजे से शुरू हो रही है। उदया तिथि को महत्व दिए जाने से नौ अप्रैल को सुबह से देवी मंदिरों और घर-घर में घट स्थापना की जाएगी। राजधानी के 10 से अधिक देवी मंदिरों में जोत प्रज्वलित करने की तैयारियां पूरी हो चुकी है। अनुमानत: 50 हजार से अधिक ज्योति विविध देवी मंदिरों में जगमगाएगी। पुरानी बस्ती के महामाया मंदिर में सबसे ज्यादा 10 हजार से अधिक जोत प्रज्वलित की जाएगी। मंदिर के चार बड़े कक्षों में तांबे के कलशों को सजाकर, बाती और तेल भरने का कार्य शुरू हो चुका है। मंदिर में आठ अप्रैल की रात्रि आठ बजे तक ही जोत प्रज्वलित कराने के लिए पंजीयन किया जाएगा।
आनलाइन पंजीयन होने से श्रद्धालुओं को राहत
महामाया मंदिर में आनलाइन पंजीयन किए जाने से श्रद्धालुओं को लंबी कतार में नहीं लगना पड़ रहा है। महामाया मंदिर ट्रस्ट रायपुर के नाम से श्रद्धालु घर बैठे ही आनलाइन भुगतान कर रहे हैं। बीते वर्षों तक मंदिर में पंजीयन कराने के लिए लंबी लाइन में लगनी पड़ती थी, इस साल मंदिरों में भीड़ नहीं दिख रही, लेकिन आनलाइन पंजीयन और भुगतान जोरशोर से हो रहा है।
आज पंजीयन का अंतिम दिन
पुरानी बस्ती में महामाया मंदिर, आकाशवाणी काली मंदिर, रावांभाठा बंजारी मंदिर, ब्राह्मणपारा कंकाली मंदिर, अमीनपारा और आमापारा के शीतला मंदिर, कुशालपुर के दंतेश्वरी मंदिर, समता कालोनी के गायत्री मंदिर, माना रोड के मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर, चूड़ी लाइन के शनि मंदिर, बंधवारा के सतबहिनिया मंदिर समेत अन्य देवी मंदिरों में आठ अप्रैल की रात्रि मंदिर बंद होने तक पंजीयन किया जाएगा।
ऐसे करें घट स्थापना
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार जिस जगह पर घट स्थापना करना हो, उसे गोबर से लीपकर अथवा गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। मिट्टी, तांबा अथवा चांदी के कलश में जल भरकर, लौंग, साबुत हल्दी, इलायची, पान, आम का पत्ता, सिक्का, अक्षत डालकर इसके उपर सकोरा में तेल, बाती रखें। जंवारा बोने के लिए जौ, गेहूं, मिट्टी का कलश रखें। रोली से स्वास्तिक बनाएं। विधिवत पूजन करके जोत प्रज्वलित करें। लोहा, स्टील का बर्तन उपयोग में न लाएं: ऐसी मान्यता है कि कलश स्थापना करने से घर में सुख, समृद्धि बढ़ती है। घट स्थापना चांदी, मिट्टी या तांबे के कलश में ही करना चाहिए। लोहा, स्टील अथवा अन्य धातु के बर्तन का उपयोग न करें।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि आठ अप्रैल की रात्रि 11.50 बजे से प्रारंभ हो रही है, जो नौ अप्रैल को रात्रि 8.30 बजे तक विद्यमान रहेगी। उदयातिथि की नवरात्रि सुबह ब्रह्म मुहूर्त से मनाई जाएगी।
शुभ काल – सुबह – 6.02 से 10.16 बजे तक l
अभिजीत मुहूर्त – 11.57 से दोपहर 12.48 बजे तकl
प्रतिदिन अलग-अलग वस्तुओं का लगाएं भोग
– प्रतिपदा पर प्रथम शैलपुत्री को केला अर्पित करें।
– द्वितीया पर ब्रह्मचारिणी को शुद्ध घी से बने व्यंजन का भोग लगाएं।
– तृतीया पर चंद्रघंटा को नमकीन और मक्खन का भोग लगाएं।
– चतुर्थी पर माता कूष्मांडा को मिश्री अर्पित करें।
– पंचमी पर स्कंदमाता को खीर, दूध अर्पित करें।
– षष्ठी पर देवी कात्यायनी को मालपुआ का भोग लगाएं।
– सप्तमी पर देवी कालरात्रि को शहद चढ़ाएं।
– अष्टमी पर महागौरी को मिठाई, गुड़, नारियल अर्पित करें।
– नवमीं पर देवी सिद्धिदात्री को पुड़ी, हलवा, चना अर्पित करें।
महाशिवरात्रि पर भगवान महाकाल का राजा स्वरूप श्रृंगार
उज्जैन। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित बारह ज्योतिर्लिंग में से एक श्री महाकालेश्वर मंदिर में शुक्रवार तड़के सुबह मंदिर के कपाट खोले गए। सबसे पहले भगवान महाकाल का जल से अभिषेक किया गया। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद, फलों के रस से बने पंचामृत से अभिषेक पूजन किया।
महाशिवरात्रि पर बाबा महाकाल का राजा स्वरूप श्रृंगार किया गया। बाबा महाकाल को भस्म चढ़ाई गई। महाकाल ने शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुण्डमाल, रुद्राक्ष की माला के साथ सुगंधित पुष्प से बनी फूलों की माला धारण। फल और मिष्ठान का भोग लगाया।
महाशिवरात्रि की सुबह सैकड़ों श्रद्धालुओं ने दर्शन कर पुण्य लाभ कमाया। लोगों ने नंदी महाराज का दर्शन कर उनके कान के समीप जाकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगा। इस दौरान श्रद्धालु महाकाल की जयकारे भी लगा रहे थे। पूरा मंदिर बाबा की जयकारे से गुंजायमान हो रहा था।
छत्तीसगढ़ में है दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग, हर साल बढ़ रहा आकार
रायपुर। दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग गरियाबंद जिले में स्थित है. भगवान भोलेनाथ की महिमा ऐसी है कि यह शिवलिंग हर साल अपने आप बढ़ रहा है. इस शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 70 फीट है, जो दुनियाभर में चर्चित है. यहां सावन और महाशिवरात्रि में सबसे ज्यादा भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है.
भूतेश्वर महादेव एक अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग है. यहां भूतेश्वर नाथ महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी जाना जाता है. छत्तीसगढ़ की भाषा मे हुंकारना (आवाज़ देना) की ध्वनि को भकुर्रा कहा जाता है इसलिए भूतेश्वर महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी पुकारा जाता है. इस शिवलिंग में हल्की सी दरार भी है, इसलिए इसे अर्धनारीश्वर के रूप मे पूजा जाता है. इस शिवलिंग का बढ़ता हुआ आकार आज भी शोध का विषय बना हुआ है. भूतेश्वर नाथ महादेव का इतिहास भूतेश्वर महादेव शिवलिंग स्वयं-भू शिवलिंग है, क्योंकि इस शिवलिंग की उत्पत्ति व स्थापना के विषय में आज तक कोई सटीक तर्क नहीं मिल सका है, परंतु जानकारों व पूर्वजों के अनुसार कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज लगभग 30 वर्ष पहले हुई थी, जब यहां चारों तरफ घने जंगल थे.
इन घने जंगलों के बीच मौजूद एक छोटे से टीले से आसपास के गांव वालों को किसी बैल के हुंकारने की आवाज सुनाई देती थी, परंतु जब ग्रामीणों ने जाकर देखा तो वहां न कोई बैल था और न कोई अन्य जानवर. ऐसी स्थिति को देख धीरे-धीरे ग्रामीणों की आस्था उस टीले के प्रति बढ़ती गई और उन्होंने उसे शिव का स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना आरंभ कर दिया. तभी से वह छोटा सा शिवलिंग बढ़ते-बढ़ते विशालकाय शिवलिंग का रूप ले चुका है. अब इसे भक्तों की आस्था कहे या भगवान का चमत्कार, तब से लेकर अब तक शिवलिंग का बढ़ना जारी है. मंदिर में शिव परिवार विराजमान है. भूतेश्वर नाथ महादेव के पीछे भगवान शिव की प्रतिमा स्थित है, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक, नंदी जी के साथ विराजमान हैं. बाबा के समीप एक गुफा है, जिसमें तपस्वी साधु का चित्र अंकित किया गया है. यहां पर कभी कोई साधु ने भोले बाबा के लिए तप किया था. मंदिर के समीप कई अन्य मंदिर भी हैं.
राजिम कुंभ में विराट सनातन संस्कृति के होते हैं दर्शन - शंकराचार्य श्री सदानंद
रायपुर। राजिम कुम्भ कल्प में आज विराट संत समागम का शुभारंभ हुआ। संत समागम में अनंत श्री विभूषित ज्योतिष मठ द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी श्री सदानंद सरस्वती जी महाराज एवं अनंत श्री विभूषित ज्योतिष मठ बद्रीनाथ पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज सहित देशभर के साधु-संत शामिल हो रहे हैं। संत समागम के प्रारंभ में दोनों शंकराचार्यों ने भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा पर पुष्प अर्पण एवं दीप प्रज्वलित कर पूजा अर्चना की। मुख्य मंच पर दोनों शंकराचार्यों की विधि-विधान से अगुवानी खाद्य मंत्री दयाल दास बघेल और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, राजिम विधायक रोहित साहू एवं अन्य जनप्रतिनिधियों की।
संत समागम में द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी सदानंद महाराज ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि धर्म रूपी कल्पवृक्ष का बीज प्रभु श्रीराम हैं। श्रीराम ने मनुष्य बनकर वो दिखाया, जो मनुष्य को करना चाहिए। हमारे वेदों का ज्ञान संतों से ही मिलता है। उन्होंने कहा कि राजिम कुंभ में विराट सनातन संस्कृति के दर्शन होते हैं। ऐसे आयोजनों से संस्कृति की रक्षा होती है। धर्म की रक्षा करनी है तो धर्म का पालन करें। धर्म की स्वयं रक्षा हो जाएगी। धर्म मार्ग पर चलने की शिक्षा हमें कुंभ से मिलती है। बद्रीनाथ पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने कहा कि संतों की वाणी से लोगों को सदाचार व्यवहार की शिक्षा मिलती है। राजिम का त्रिवेणी संगम, आचार्य का समागम, अध्यात्मिक लाभ से पवित्र स्थल बन चुका है। कुंभ कल्प का मतलब कुंभ जैसा होना है। कुंभ कल्प बोलने से मान घटता नहीं है बल्कि और बढ़ जाता है।
इस अवसर पर खाद्य मंत्री दयालदास बघेल और स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल ने कहा कि सौभाग्य की बात है कि राजिम कुंभ कल्प में दोनों शंकराचार्य का दर्शन लाभ श्रद्धालुओं को मिल रहा है। उन्होंने जगतगुरूओं से छत्तीसगढ़ और सभी लोगों के सुख और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा। कार्यक्रम में विधानसभा क्षेत्र राजिम के विधायक रोहित साहू ने आभार प्रदर्शन किया।
राजिम कुंभ कल्प के पहली बार सुनी और देखी जाएगी श्री राम मंदिर के 500 वर्षों का इतिहास
राजिम कुम्भ कल्प में 3 मार्च हो होगी प्रस्तुति
रायपुर। पूरे देश और दुनियाभर में प्रभु श्री राम के आने की खुशी मना रहे हैं। यह गौरवशाली पल को सभी रामोत्सव के रूप में मना रहे है जब अयोध्या में भगवान श्री राम 500 से अधिक वर्षों के बाद मंदिर में पुनः विराजमान हुए हैं।
राम महोत्सव को लेकर देश भर में विभिन्न तरह के आयोजन किए जा रहे हैं। इसी के तहत भगवान श्री राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में त्रिवेणी संगम राजिम के चल रहे कुंभ कल्प के मुख्यमंच में 03 मार्च को ‘गाथा श्रीराम मंदिर की’ का आयोजन होने जा रहा है। इस गाथा में श्रीराम जन्मभूमि के 500 साल के इतिहास से लेकर प्रभु श्रीराम लला की प्राणप्रतिष्ठा तक की कथा सुनाई जाएगी।
धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने बताया कि राजिम कुंभ कल्प में मुख्य मंच से “गाथा श्रीराम मंदिर की संगीतमय महागाथा का संध्याकाल में आयोजन होने जा रहा है। इसमें अयोध्या के राम मंदिर की पिछले 500 वर्षों से लेकर जनवरी 2024 तक की गाथा की संगीतमयी प्रस्तुति होगी। यह प्रस्तुति एक लाइव म्यूजिकल बैंड के साथ होगी। श्रीराम जन्मभूमि की तपस्या एवं संघर्ष की सत्य गाथा के इस कार्यक्रम में प्रवेश निःशुल्क रहेगा। श्रीराम मंदिर की महागाथा को सुर-संगीत में श्रद्धालु देख और सुन सकेंगे।
संगीतमयी गाथा में श्रीराम और अयोध्या से जुड़ी हर घटना का उल्लेख होगा साथ ही राजा विक्रमादित्य और माँ अहिल्याबाई होल्कर द्वारा मंदिर के जीर्णाेद्धार, बैरागी साधुओं के संघर्ष, गर्भगृह से रामलला का निकाला जाना, गर्भगृह में रामलला का प्रकट होना, कार सेवक, कोठारी बन्धुओं के बलिदान से लेकर वर्तमान निर्माणाधीन मंदिर की भव्यता, दिव्यता का चित्रण किया जाएगा।
भव्य गंगा आरती के साथ राजिम कुंभ कल्प 2024 का हुआ शुभारंभ
रामोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है राजिम कुंभ कल्प
तीर्थनगरी राजिम के पवित्र कुंभ में देशभर के साधू-संतों ने लिया हिस्सा
प्रसिद्ध भजन गायिका पौडवाल ने कर्णप्रिय भजन की प्रस्तुति नृत्य नाटिका ‘गीतक दर्शन’ ने किया भावविभोर
रायपुर। जीवन दायिनी महानदी, पैरी नदी और सोंढूर नदी के त्रिवेणी संगम छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम में राजिम कुंभ कल्प-2024 का गंगा आरती के साथ भव्य शुभारम्भ हुआ। संगम नगरी राजिम कुंभ कल्प में अयोध्या धाम का आकर्षक वैभव दिखा। यह राजिम कुंभ कल्प रामोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है।
इस मौके पर मंत्रीगण बृजमोहन अग्रवाल, मंत्री रामविचार नेताम, टंक राम वर्मा, पूर्व मंत्री एवं विधायक अजय चंद्राकर, विधायक रोहित यादव विशेष रूप से मौजूद थे।
संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इस मौके पर कहा कि राजिम कुंभ कल्प में संत महात्मा अमृतवाणी, शिव वर्षा करते हैं मैं उनका अभिनंदन और स्वागत करता हूं। पूरे देश में नदियों, पानी को बचाने जुटी साध्वी प्रज्ञा भारती का आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने कहा कि नदियों के त्रिवेणी संगम की तरह ही राजिम में तीन जिलों का भी संगम है।
छत्तीसगढ़ माता कौशल्या की जन्मभूमि है, प्रभु श्रीराम का वन गमन मार्ग है यह पूरे देश और विश्व को पता लगे इसी उद्देश्य से राजिम कुंभ कल्प का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि माघी पुन्नी मेला हमारे देश के हजारों लाखों साल का इतिहास है परंतु इतिहास को समृद्ध बनाना हमारी जिमेदारी हैं। इसीलिए हमारी सरकार ने संत महात्माओं के सुझाव पर इसके साथ में कल्प शब्द जोड़ा और राजिम कुंभ कल्प के रूप में आयोजन किया जा रहा है।
श्री अग्रवाल ने कहा कि आगामी 15 दिनों तक संत समागम, सहित विभिन्न आयोजन चलता रहेगा। महाशिव रात्रि के शुभ अवसर पर कुंभ मेला का समापन होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन से प्रदेश का सम्मान बढे, देश भक्ति की भावना बड़े क्योंकि देश है तो धर्म है और धर्म है तो देश है। बिना धर्म के देश भी नहीं है और बिना देश के धर्म भी नहीं है। इसके देश को भी हमको बचाना है देश को भी समृद्धिशाली बनाना है।
कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने कहा कि हम सबके लिए गौरव का पल है कि आज राजिम कुंभ कल्प का शुभारंभ सभी सम्माननीय साधु-संत-महात्माओं की उपस्थिति और महामंडलेश्वर अग्नि पीठाधीश्वर कृष्णानंद महाराज जी की उपस्थिति में शुभारम्भ हो रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में हमारी सरकार धार्मिक आध्यात्मिक और सबकी आस्था का सम्मान करने वाली है। कुम्भ मेला के माध्यम से प्रदेश और देश का मान बढे़ ऐसी कामना करता हूं।
पूर्व मंत्री व विधायक अजय चंद्राकर ने कहा कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयासों से अयोध्या में प्रभु श्रीरामलला को प्रतिस्थापित करने में सफल हुए हैं। श्री चंद्रकार ने कहा कि पिछली सरकार ने प्रबुद्धजनों से सुझाव लिए बिना की कुछ स्थानों पर राम वन गमन मार्ग बना दिया। हमारी सरकार लोगों की आस्था और विश्वास को टूटने नहीं देगी। कार्यक्रम को सांसद चुन्नीलाल साहू और विधायक रोहित साहू ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध गायिका अनुराधा पौडवाल ने कर्णप्रिय भजन की प्रस्तुति दी और नृत्य नाटिका ‘गीतक दर्शन’ ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।
कार्यक्रम में विधायक इन्द्र कुमार साहू, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के सचिव अन्बलगन पी., संभागायुक्त संजय अलंग, प्रबंध संचालक पर्यटन मंडल जितेंद्र शुक्ला, संचालक संस्कृति विवेक आचार्य सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
आस्था का संगम छत्तीसगढ़ का राजिम कुंभ कल्प प्रारंभ
•पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
रायपुर/ धर्म, संस्कृति और संविधान छत्तीसगढ़ के सदियों से लब्ध प्रतिष्ठित प्रयागराज राजिम में माघ पूर्णमासी का लक्खी मेला लगता रहा है लोक आस्था का यह महापर्व प्रदेश के कोने कोने से आए श्रद्धालुओं के जन समुद्र के कारण एक कुम्भ के स्वरूप में ही भरता रहा है पर जब से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवादी, धर्मप्राण सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने छत्तीसगढ़ को एक नई सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान देने के लिए प्रयाग राज राजिम को चुना और उसकी गरिमा के अनुरूप इसे त्रिवेणी संगम के राजीव लोचन भगवान और कुलेश्वर महादेव की नगरी इस हरिहर क्षेत्र को कुम्भ के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। 2003 में तत्कालीन डॉक्टर रमन सिंह की सरकार में धर्मस्व, संस्कृति एवम पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जी ने यह बीड़ा उठाया और देश भर के साधु संतों, महामंदलेश्वरों, अखाड़ों के महंतों को राजिम आमंत्रित किया और इसमें देश के विभिन्न पीठों के जगतगुरु शंकराचार्य भी पधारे और इस आहूत धर्म संसद ने समवेत स्वरों में इसे प्रतिवर्ष होने वाले राजिम कुम्भ के रूप में मान्यता थी। अब यह माधी पुन्नी मेला अपने भव्य और दिव्य रूप में पदोन्नत होकर देश और दुनिया में राजिम कुम्भ के रूप में पहचाना जाने लगा और इसमें कर्मयोगी कृष्ण सरीखे बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी भागीरथी भूमिका निभाई। स्वामी विशोकानंद जी, सतपाल महाराज, चंपारण पीठ के महाप्रभु वल्लभाधीश के वंशज जै जै श्री द्वारकेश लालजी चक्रमहामेरू पीठ के डंडी स्वामी जी, पूज्य भाई श्री रमेश भाई ओझा, डॉक्टर गंगादास जी, अभिलाष साहेब जी, शदानी दरबार के नवम पीठ प्रमुख युधिष्ठिर लाल जी, डॉक्टर बिन्दुजी, तुलसी पीठ प्रमुख स्वामी रामभद्राचार्य जी, सभी अखाड़ों के प्रमुख जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरीजी महाराज, पण्डित विजय शंकर मेहता, जोधपुर के अक्रिय जी, कौशल्या पीठ के बाल योगी रामबालक दास जी और सैकड़ों अनेक नामचीन साधु संतों की चरण रज पाकर यह धरा और यहां के निवासी धन्य हो गए, बृजमोहन अग्रवाल ने व्यक्तिगत रुचि लेकर इसकी नई पहचान दिलाने के लिए अनथक प्रयास किए, दिन रात एक कर दिए और देश विदेश में राजिम की ख्याति फैलने लगी। सभी साधु संतों के प्रवचनों की अमृत वर्षा से यह धरती कुम्भ नगरी के रूप में तेजी से पल्लवित होने लगी। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक होने वाले इस आयोजन में सन्त समागम में विभिन्न धार्मिक गतिविधियां, यज्ञ हवन, अनुष्ठान, श्री मद भागवत, रामायण, अखण्ड रामायण, ज्योतिष एवम वास्तु सम्मेलन राष्ट्रीय स्तर पर होने और देखते ही देखते बहुत कम समय में छत्तीसगढ़ का यह प्रयाग राज राजिम कुम्भ के रूप में लोकप्रिय हो गया। लोगों को त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाकर सुख की अनुभूति होने लगी, काशी और ऋषिकेश की तरह यहां भी पण्डित परिषद के द्वारा त्रिवेणी संध्या महानदी महतारी की आरती की जाने लगी, जिसे सभी संतो का आशीर्वाद मिला। खेल, तमाशे, मीना बाजार, तरह तरह के झूलों का साथ सबने मिलकर इसकी रौनक में चार चांद लगा दिए।मुक्ताकाशी मंच से विश्वविख्यात हस्तियों की भजन संध्या होने लगी, स्थानीय लोक कलाकारों को एक विराट मंच मिला और कुलमिलाकर राजिम कुम्भ क्षेत्र का ऐसा सर्वांगीण प्रचार हुआ कि आज यह छत्तीसगढ़ की नई पहचान बन गई है, यह सब छत्तीसगढ़ शासन के धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की कर्मयोगिता के कारण ही हो पाया। वे सभी साधु संतो के बड़े लाडले हैं, हमारे पूरी पीठाधीश्वर संत भगवंत जगद्गुरु शंकराचार्य जी श्री निश्चलानंद जी ने कालांतर में यह निर्देश दिया कि हमारे सतयुग के सनातन चार कुम्भ हैं जो प्रत्येक 12 वर्ष में लगते हैं। यह कलयुग का इस कल्प का ऐसा कुम्भ है, जो प्रत्येक वर्ष लगता है, जिसमे एक ही मंच पर सभी संप्रदायों के सन्त आते हैं इसलिए इसके साथ "कल्प' शब्द जोड़ दिया जाए, तब उनकी इच्छा को आदेश मानकर शिरोधार्य करते हुए बृजमोहन जी ने राजिम कुम्भ कल्प नाम दिया, किन्तु 2018 में आई कांग्रेस की सरकार ने इसे माधी पुन्नी कर दिया, यह ठीक ऐसा ही था जैसे कि किसी राष्ट्रपति को पार्षद बना दिया जाए, देश और प्रदेश में हर साल हजारों पुन्नी मेले होते रहते हैं, और राजिम की इस बड़ी पहचान को फिर से छोटा कर देना यहां के निवासियों के लिए भी बड़ा दुख दाई था क्यों कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी कहा था कि मेरे लिए मेरी जननी और मेरी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है, और यही कारण है कि अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि राजिम को फिर से एक शासकीय अध्यादेश लाकर बृजमोहन अग्रवाल जी ने इसके गौरव को वापस लौटाया है। इस अंचल के लोग इस बात से बड़े अभिभूत हैं और इस वर्तमान सरकार के प्रति अपना आभार प्रकट कर रहे हैं। इस बार 24 फरवरी से 8 मार्च तक होने वाले राजिम कुम्भ कल्प को बड़े उत्साहित होकर "रामोत्सव" नाम दिया गया है उसके केंद्र में यह कारण है कि सदियों की प्रतीक्षा और संघर्षों के बाद रामलला अपनी अयोध्या पुरी के भव्य और दिव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हुए हैं और इस उपलक्ष्य में पूरे देश में और दुनिया में भी अप्रवासी भारतीयों ने धूमधाम से फिर से दिवाली मनाई हैं, जोरशोर से उत्सव मनाया है, इसलिए राजिम में भी "रामोत्सव" मनाया जा रहा है। इस बार अनुराधा पौडवाल की भजन संध्या से आज शुरुआत हो रही है, पंडित प्रदीप मिश्रा, बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्रीजी सहित हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृन्दावन, काशी सहित देश के कोने कोने से साधु संत पधार रहे हैं। राजिम कुम्भ कल्प को अब फिर से धर्म संस्कृति और संविधान की भी अधिकृत स्वीकृति मिल गई है। छत्तीसगढ़ का आदिवासी, वनवासी, भोलाभाला जनमानस जिनके बीच राम रहे, रमें रहे, अपने भांचा राम को अपने बीच पाकर पुलकित है, प्रसन्न है !