धर्म /अध्यात्म
पूर्णिमा स्नान के साथ आज से 15 दिनों का पितृ पक्ष शुरू
रविवार, 7 सितंबर से 15 दिन तक चलने वाला पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है। भाद्रपद पूर्णिमा के पावन स्नान के साथ, यह विशेष अवधि शुरू हो गई है। इस दौरान लोग अपने आक्षेप को श्रद्धा और सम्मान के साथ याद करते हैं और अपनी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कार्य करते हैं। सिद्धांत यह है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने वंशों द्वारा किये गए श्राद्ध कर्मों को स्वीकार करते हैं।
क्या होता है पितृ पक्ष?
हिन्दू धर्म में, पितृ पक्ष वह समय है जब व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति अपना आभार और सम्मान व्यक्त करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पूर्वज पितृ लोक से पृथ्वी पर आते हैं। अगर उनके लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाए, तो उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे पितृ ऋण चुकाने का एक तरीका माना जाता है।
पितृ पक्ष में क्या करें?
श्राद्ध और तर्पण: पितृ पक्ष में अपने पितरों की मृत्यु की तिथि (तिथि) के अनुसार श्राद्ध करना चाहिए। इस कर्म में तर्पण, पिंडदान, और ब्राह्मणों को भोजन कराना शामिल है।
दान-पुण्य: इस दौरान अन्न, वस्त्र, जूते-चप्पल, छाता और अन्य उपयोगी वस्तुओं का दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
पशु-पक्षियों को भोजन: श्राद्ध के दौरान, ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद कौए, गाय और कुत्तों को भोजन कराना चाहिए, क्योंकि इन्हें पितरों का रूप माना जाता है।
सात्विक जीवन: पितृ पक्ष के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए। मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
ध्यान और प्रार्थना: अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए रोज ध्यान और प्रार्थना करनी चाहिए।
पितृ पक्ष में क्या न करें?
नया कार्य शुरू न करें: यह अवधि शोक और श्रद्धा की है। इसलिए, इस दौरान किसी भी नए और शुभ कार्य की शुरुआत, जैसे शादी, गृह प्रवेश, या नए व्यापार का उद्घाटन नहीं करना चाहिए।
मांगलिक कार्य टालें: पितृ पक्ष के दौरान विवाह जैसे मांगलिक कार्यों से बचना चाहिए।
नए कपड़े न खरीदें: इस अवधि में नए कपड़े, गहने या अन्य लग्जरी चीजें खरीदने से बचना चाहिए।
नाखून और बाल न कटवाएं: कुछ लोग पितृ पक्ष के दौरान नाखून और बाल काटने से बचते हैं, क्योंकि इसे शुभ नहीं माना जाता।
किसी का अपमान न करें: इस दौरान किसी भी व्यक्ति, विशेषकर बुजुर्गों का अपमान नहीं करना चाहिए।
इस वर्ष, पितृ पक्ष का समापन 21 सितंबर, रविवार को सर्व पितृ अमावस्या के साथ होगा। यह दिन उन सभी पितरों के लिए श्राद्ध करने का मौका है जिनकी मृत्यु की तिथि याद न हो।
परिवर्तनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए करें इन मंत्रों का जप, दूर होंगे सभी संकट
Parivartani Ekadashi 2025 : हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल यह एकादशी 14 सितंबर, 2025 को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शयन मुद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे ‘परिवर्तनी’ कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
क्यों है परिवर्तनी एकादशी इतनी खास?
परिवर्तनी एकादशी को ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत के साथ-साथ मंत्रों का जाप करना भी बेहद फलदायी माना गया है।
भगवान विष्णु के मंत्र, जिनका जाप करना है शुभ
परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अपने जीवन से सभी संकटों को दूर करने के लिए इन मंत्रों का जाप करें:
1. ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ यह भगवान विष्णु का सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से मन शांत होता है और सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
2. शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्।। लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्। यह मंत्र भगवान विष्णु के स्वरूप का वर्णन करता है। इसका जाप करने से हर तरह के भय और संकट से मुक्ति मिलती है।
3. ‘ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्’ यह विष्णु गायत्री मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
4. ‘ॐ विष्णवे नमः’ यह एक बहुत ही छोटा और प्रभावशाली मंत्र है। इसका जाप करने से जीवन में आने वाली हर बाधा दूर होती है और सफलता मिलती है।
पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल पर एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।
भगवान को फूल, तुलसी के पत्ते, चंदन और भोग (फल, मिठाई) अर्पित करें।
दीपक और धूप जलाएं।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और ऊपर बताए गए मंत्रों का जाप करें।
दिनभर व्रत रखें। अगर आप निर्जल व्रत नहीं रख सकते, तो फलाहार ले सकते हैं।
शाम को पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद बांटें।
अगले दिन, यानी द्वादशी को, व्रत का पारण करें।
राधा अष्टमी 2025: जाने कब है राधा रानी का जन्मोत्सव?
हिंदू धर्म में राधा अष्टमी का पर्व बहुत ही खास माना जाता है। यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद आता है। इस दिन भक्तजन राधा रानी का विधि-विधान से पूजन और व्रत करते हैं। आइए जानते हैं कि इस साल 2025 में राधा अष्टमी कब मनाई जाएगी और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है।
राधा अष्टमी 2025 की तिथि
पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 30 अगस्त 2025 को रात 10 बजकर 46 मिनट पर शुरू हो रही है और इसका समापन 1 सितंबर 2025 को देर रात 12 बजकर 57 मिनट पर होगा। चूंकि हिंदू धर्म में कोई भी त्योहार उदया तिथि (सूर्योदय के समय की तिथि) के अनुसार मनाया जाता है, इसलिए राधा अष्टमी का पावन पर्व 31 अगस्त 2025, रविवार को मनाया जाएगा।
राधा अष्टमी 2025 पूजा का शुभ मुहूर्त
राधा रानी का जन्म मध्याह्न काल (दोपहर) में हुआ था, इसलिए उनकी पूजा भी इसी समय की जाती है। इस साल पूजा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
मध्याह्न पूजा मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट तक।
अवधि: 2 घंटे 33 मिनट।
इस शुभ मुहूर्त में राधा रानी की पूजा करने से भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और प्रेम बना रहता है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है।
गणेश चतुर्थी पर क्यों नहीं देखते चांद? जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा और मान्यताएं
देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान गणेश की प्रतिमा घर लाकर उनकी पूजा करते हैं। लेकिन, इस त्योहार से जुड़ी एक खास मान्यता यह भी है कि इस दिन भूलकर भी चांद नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है, जिसके कारण यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
गणेश जी और चंद्रमा की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान गणेश चतुर्थी के दिन अपने प्रिय भोजन मोदक और लड्डू खाकर कैलाश पर्वत से लौट रहे थे। भारी भरकम शरीर और हाथी के सिर के कारण वे चलते-चलते रास्ते में गिर पड़े। यह देखकर चंद्रमा अपनी हंसी नहीं रोक पाए और जोर-जोर से हंसने लगे।
चंद्रमा के इस उपहास से गणेश जी को बहुत क्रोध आया। उन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया कि जो भी गणेश चतुर्थी के दिन तुम्हें देखेगा, उस पर झूठा आरोप या मिथ्या दोष लग जाएगा। गणेश जी ने कहा कि तुम्हारी हंसी ने मेरे स्वरूप का अपमान किया है, इसलिए आज से तुम्हारा सौंदर्य और चमक भी फीकी पड़ जाएगी।
इस श्राप का प्रभाव
चंद्रमा ने तुरंत अपनी गलती का एहसास किया और भगवान गणेश से माफी मांगी। गणेश जी शांत हुए और उन्होंने कहा कि मेरा श्राप पूरी तरह से खत्म तो नहीं हो सकता, लेकिन इसे सीमित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति गलती से इस दिन चांद देख लेता है, उसे कुछ उपाय करने होंगे, जिससे इस श्राप का प्रभाव कम हो सके। इसी वजह से आज भी गणेश चतुर्थी के दिन चांद देखने की मनाही होती है।
देशभर में गणेश महोत्सव की धूम, जानें क्या है इस पर्व का महत्व?
सनातन धर्म में गणेश महोत्सव का विशेष महत्व है। यह पर्व भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। खासकर, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में गणेश चतुर्थी को लेकर एक अलग ही जोश देखने को मिलता है। हर घर में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है और 10 दिनों तक पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
क्यों मनाया जाता है गणेश महोत्सव?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गणपति बप्पा स्वयं पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसलिए, भक्त इस दिन को एक बड़े उत्सव के रूप में मनाते हैं।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व?
- प्रतिमा की स्थापना: भक्त अपने घरों में या सार्वजनिक पंडालों में भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करते हैं।
- पूजा-अर्चना: 10 दिनों तक गणेश जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है, जिसमें उन्हें मोदक, लड्डू और अन्य प्रिय व्यंजन अर्पित किए जाते हैं।
- विसर्जन: 10वें दिन, अनंत चतुर्दशी को, गणपति बप्पा की प्रतिमा का विसर्जन जल में किया जाता है। भक्त इस दौरान “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” का जयघोष करते हैं।
गणेश महोत्सव सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि यह एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है, जहां लोग एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
आज और कल मनाया जाएगा कान्हा का जन्मोत्सव
आज यानी 15 अगस्त को देशभर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। वहीं, पंचांग के अनुसार कुछ साधक 16 अगस्त के दिन भी जन्माष्टमी का व्रत और पूजा-अर्चना करेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर ही रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। ऐसे में यह दिन कान्हा जी की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी के साथ-साथ उसकी मंजरी बेहद प्रिय है। इस शुभ दिन पर तुलसी की मंजरी से जुड़े कुछ खास और चमत्कारी उपाय करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
जन्माष्टमी पर मंजरी से जुड़े उपाय:
- कान्हा जी को अर्पित करें मंजरी: जन्माष्टमी की पूजा के दौरान भगवान कृष्ण की प्रतिमा को तुलसी की मंजरी जरूर अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि इससे श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
- मंजरी का तिलक: पूजा के बाद मंजरी को तिलक के रूप में अपने माथे पर लगाएं। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी कार्यों में सफलता मिलने की मान्यता है।
- गंगाजल में मिलाएं मंजरी: पूजा के बाद मंजरी को गंगाजल में मिलाकर घर के हर कोने में छिड़कें। इससे घर की नकारात्मकता दूर होती है और सुख-शांति का वास होता है।
- मंजरी की माला: आप तुलसी की मंजरी को धागे में पिरोकर एक माला बना सकते हैं और इसे भगवान कृष्ण को पहना सकते हैं। यह उपाय धन-धान्य और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
धार्मिक जानकारों का मानना है कि इन उपायों को पूरी श्रद्धा के साथ करने से व्यक्ति को भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में खुशहाली आती है।
16 अगस्त को देशभर में मनाया जाएगा जन्माष्टमी का त्यौहार
इस साल भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी शनिवार, 16 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। जैसे-जैसे यह शुभ दिन नज़दीक आ रहा है, भक्तों के बीच उत्साह और भक्ति का माहौल गहराता जा रहा है। जन्माष्टमी के पावन पर्व के लिए देश भर के मंदिरों और घरों में जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं।
मंदिरों में खास सजावट और कार्यक्रम
मथुरा, वृंदावन और द्वारका जैसे भगवान कृष्ण से जुड़े प्रमुख तीर्थस्थलों के मंदिरों में विशेष तैयारियां हो रही हैं। फूलों, रोशनी और झांकियों से मंदिरों को सजाया जा रहा है। इन मंदिरों में जन्माष्टमी की रात विशेष पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। कई जगहों पर भगवान कृष्ण की लीलाओं पर आधारित नाटक भी मंचित किए जाएंगे।
घरों में लड्डू गोपाल की तैयारियां
भक्त अपने घरों में भी जन्माष्टमी की तैयारियों में जुटे हैं। लोग अपने लड्डू गोपाल की मूर्तियों को सजाने के लिए नए वस्त्र, मुकुट और झूले खरीद रहे हैं। साथ ही, कृष्ण जन्म के बाद उन्हें चढ़ाने के लिए तरह-तरह के भोग और पकवान बनाने की तैयारियां भी चल रही हैं। इस दिन विशेष रूप से माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है, जो भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार, जन्माष्टमी का पर्व भगवान कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में मनाया जाता है। इस साल 16 अगस्त को पूजा का शुभ मुहूर्त रात 12 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भक्त अपने घरों और मंदिरों में पूजा कर सकते हैं।
यह पावन पर्व भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाने और उनकी शिक्षाओं को याद करने का अवसर है। जन्माष्टमी का यह दिन भक्तों के लिए सुख, समृद्धि और भक्ति का संदेश लेकर आता है।
कजरी तीज 2025 जानें व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कजरी तीज का पावन पर्व मंगलवार, 12 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाएगा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाने वाला यह पर्व विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधिवत पूजा-अर्चना करने से दांपत्य जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को कथा वाचन के बाद पूजन करती हैं।
माना जाता है कि पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से कजरी तीज का व्रत करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम व सौहार्द बढ़ता है, वहीं अविवाहित कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में यह पर्व बड़े उत्साह और आस्था के साथ मनाया जाता है।
01 अगस्त को है सावन की दुर्गा अष्टमी , जानिए पूजा का महत्व और विधि
श्रावण मास की अष्टमी तिथि इस बार शुक्रवार, 01 अगस्त 2025 को पड़ रही है, जिसे सावन की दुर्गा अष्टमी के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। यह पावन तिथि मां दुर्गा को समर्पित होती है और इस दिन को देवी भक्त विशेष व्रत, पूजन और मंत्र जाप के माध्यम से मनाते हैं।
दुर्गा अष्टमी का महत्व
शास्त्रों में वर्णित है कि जो साधक सच्चे मन से अष्टमी व्रत रखते हैं और देवी दुर्गा की उपासना करते हैं, उनके जीवन से हर प्रकार की नकारात्मकता, कष्ट और संकट समाप्त हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख-समृद्धि, शांति और उन्नति का वास होता है।
पूजा विधि
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सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।
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घर या मंदिर में देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाएं।
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लाल फूल, लाल चूड़ी, सिंदूर, रोली, अक्षत और लाल फल अर्पित करें।
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दुर्गा सप्तशती का पाठ या मां दुर्गा के 108 नामों का जप करें।
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व्रत रखते हुए दिनभर मां दुर्गा का स्मरण करें और शाम को आरती करें।
मां दुर्गा के चमत्कारी नाम
अष्टमी पर मां के इन प्रमुख नामों का जप करें:
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।”
इनके अलावा मां के 108 नामों का जप भी किया जा सकता है, जैसे:
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दुर्गा
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चंडी
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भवानी
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कात्यायनी
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अन्नपूर्णा
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कालरात्रि
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महागौरी
विशेष फल की प्राप्ति
कहा जाता है कि अष्टमी के दिन किए गए दान, पूजन और जप का फल सौगुना मिलता है। यदि आप जीवन में किसी विशेष संकट या रोग से परेशान हैं, तो इस दिन व्रत करके मां दुर्गा से प्रार्थना करें — आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
आज नाग पंचमी : जानिए किन प्रमुख 12 नागों की आज होती है पूजा।
नागपंचमी 2025: सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन 12 प्रमुख नागों की पूजा की जाती है जो कि सभी शिवजी के गण हैं। इनमें से भी 8 नाग प्रमुख हैं। इस बार नाग पंचमी का पर्व आज 29 जुलाई 2025 मंगलवार को मनाया जाएगा।
नाग पंचमी 29 जुलाई को, जानिए पूजा विधि और महत्व
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाने वाली नाग पंचमी का पर्व इस वर्ष 29 जुलाई, मंगलवार को बड़े श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व नाग देवताओं की पूजा और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के प्रतीक के रूप में खास महत्व रखता है।
धार्मिक मान्यता: शिव के सेवक हैं नाग
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नागों को भगवान शिव का सेवक माना गया है और साथ ही वे पृथ्वी के अंदर जीवन चक्र के रक्षक भी हैं। नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
घर पर ऐसे करें नाग पंचमी की पूजा
नाग पंचमी की पूजा घर पर भी बेहद सरल तरीके से की जा सकती है। इसके लिए किसी विशेष सामग्रियों या मंदिर जाने की आवश्यकता नहीं होती।
पूजा विधि:
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स्नान के बाद स्वच्छ स्थान पर नाग देवता की तस्वीर या प्रतीक चिह्न स्थापित करें।
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कच्चे दूध, चावल, कुश, हल्दी और फूल अर्पित करें।
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दीपक और धूप जलाएं।
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फिर श्रद्धा पूर्वक नाग देवता का मंत्र जपें।
मंत्र:
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“ॐ नमो नागदेवाय”
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या “ॐ अनन्ताय नमः”
क्या है नाग पंचमी का महत्व?
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यह दिन सर्पों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का होता है।
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माना जाता है कि इस दिन पूजा करने से सर्प दोष, कालसर्प दोष से राहत मिलती है।
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यह पर्व पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी विशेष माना जाता है, क्योंकि नागों का पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में विशेष योगदान होता है।
न करें ये कार्य नाग पंचमी पर:
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इस दिन भूमि की खुदाई, पेड़-पौधों की कटाई नहीं करनी चाहिए।
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नागों को नुकसान पहुंचाना अशुभ माना जाता है।
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दूध को व्यर्थ न बहाएं, बल्कि पूजा के बाद वही दूध जरूरतमंदों को पिलाएं।
23 जुलाई को बन रहे हैं शुभ योग, महादेव को प्रसन्न करने से दूर होंगी परेशानियां
सावन महीने की शिवरात्रि इस बार 23 जुलाई 2025, को मनाई जाएगी। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन सावन मास की शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह महीना स्वयं भगवान शिव को समर्पित माना गया है।
इस बार की सावन शिवरात्रि और भी खास हो गई है क्योंकि इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, गजकेसरी योग, बुद्धादित्य योग और मालव्य राजयोग जैसे अत्यंत शुभ और दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह संयोग शिव उपासना के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
सावन शिवरात्रि पर बन रहे शुभ योग:
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सर्वार्थ सिद्धि योग: यह योग कार्यों में सफलता और मनोकामना पूर्ति का संकेत देता है।
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गजकेसरी योग: यह व्यक्ति को बुद्धिमत्ता, प्रतिष्ठा और भाग्य वृद्धि देता है।
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बुद्धादित्य योग: यह सूर्य और बुध के मिलन से बनता है और बुद्धि-विवेक में वृद्धि करता है।
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मालव्य योग: यह योग सौंदर्य, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।
सावन शिवरात्रि के विशेष उपाय:
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कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करें – इससे जीवन में सौभाग्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
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काले तिल और गंगा जल से जलाभिषेक करें – इससे पापों से मुक्ति मिलती है।
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‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें – मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
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गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें – इससे धन-समृद्धि में वृद्धि होती है।
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बिल्वपत्र, धतूरा और आक के फूल चढ़ाएं – शिव जी को ये चीजें अत्यंत प्रिय होती हैं और शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
सावन सोमवार के व्रत का खास महत्व, जानें पूजा का सही तरीका और जरूरी नियम
सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति के लिए बेहद पावन माना जाता है। खासकर सावन के सोमवार को शिवजी का व्रत रखने से विशेष फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से कुंवारी कन्याओं को योग्य वर मिलता है और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
अगर आप भी सावन सोमवार का व्रत करने जा रही हैं, तो पूजा की तैयारी और विधि को जानना जरूरी है। आइए जानते हैं—
रविवार रात की तैयारी
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रविवार की रात घर की अच्छी तरह सफाई कर लें, खासकर पूजा स्थान की।
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सुबह की पूजा में उपयोग होने वाली सारी सामग्री तैयार रखें।
पूजन सामग्री में शामिल करें:
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बेलपत्र, सफेद फूल
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गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी
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शक्कर, फल
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अगरबत्ती, घी का दीपक, कपूर
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भगवान शिव की तस्वीर या शिवलिंग
सोमवार सुबह व्रत और पूजा विधि
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ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
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साफ कपड़े पहनें और पूजा स्थान पर शिवलिंग या भगवान शिव की तस्वीर स्थापित करें।
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शिवलिंग पर जल, दूध और गंगाजल से अभिषेक करें।
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बेलपत्र, फूल और भस्म अर्पित करें।
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पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से शिवलिंग स्नान कराएं।
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धूप-दीप से आरती करें।
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“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
व्रत में इन बातों का ध्यान रखें
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व्रत के दौरान दिनभर फलाहार करें या निर्जल व्रत रख सकते हैं (स्वास्थ्य अनुसार)।
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किसी से कटु वचन न बोलें, मन में शिव जी का ध्यान रखें।
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शाम को पुनः शिवजी की पूजा कर आरती करें।
श्रावण मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व – आत्मशुद्धि और शिवभक्ति का सर्वोच्च साधन
श्रावण मास हिन्दू धर्म में वह पावन काल होता है, जब संपूर्ण सृष्टि शिवमय हो जाती है। वर्षा की हर बूंद जैसे गंगाजल बनकर शिवलिंग पर अर्पित होती है, और चारों दिशाओं में “ॐ नमः शिवाय” की पावन गूंज सुनाई देती है। यह महीना सिर्फ पूजा-पाठ का समय नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, तपस्या और शिव में लीन होने का सशक्त अवसर है।
रुद्राभिषेक का महत्व
रुद्राभिषेक भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक अत्यंत प्रभावशाली और शुभ अनुष्ठान है। इसे श्रावण मास में करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश
मानसिक शांति और स्थिरता
मनोकामना पूर्ति
रोग और बाधाओं से मुक्ति
जीवन में सकारात्मकता और सफलता
रुद्राभिषेक के श्रेष्ठ दिन
श्रावण मास के सोमवार को रुद्राभिषेक करना अत्यंत शुभ माना गया है।
इसके अलावा श्रावणी अमावस्या, श्रावण पूर्णिमा, और प्रदोष व्रत के दिन भी रुद्राभिषेक करना विशेष फलदायी होता है।
रुद्राभिषेक विधि
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सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनें
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शिवलिंग को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं
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पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से अभिषेक करें
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बिल्वपत्र, धतूरा, आक, पुष्प अर्पित करें
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रुद्र सूक्त, महामृत्युंजय मंत्र या “ॐ नमः शिवाय” का जप करें
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अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें.
लक्ष्मी नारायण की पूजा से मिलेगा सुख, सौभाग्य और संतान सुख, जानें महत्व और विधि
Ashadh Purnima 2025 : वैदिक पंचांग के अनुसार, 10 जुलाई 2025 को आषाढ़ पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाएगा। इस दिन को विशेष रूप से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा-अर्चना के लिए शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस अवसर पर विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने से साधक को सुख-समृद्धि और संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
क्या है आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व?
मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा पर लक्ष्मी नारायण जी की आराधना से घर में दरिद्रता दूर होती है।
इस दिन व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
निसंतान दंपती संतान प्राप्ति के लिए इस दिन विशेष पूजा करते हैं।
पूजा विधि:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
घर में लक्ष्मी नारायण जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
गंगा जल से शुद्धिकरण करें।
पुष्प, फल, नैवेद्य और पंचमेवा अर्पित करें।
लक्ष्मी नारायण जी की संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें।
सत्यनारायण व्रत कथा सुनें या करवाएं।
दिनभर व्रत रखें और संध्या काल में आरती करें।
10 जुलाई को मनाया जाएगा गुरु और शिष्य के रिश्ते का पावन पर्व
Guru Purnima 2025 : गुरु पूर्णिमा हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन शिष्य अपने गुरु को याद कर उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हिंदू धर्म में गुरु का स्थान त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय:
इस साल गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन गुरु पूजा, व्रत और विशेष अनुष्ठानों का महत्व होता है।
क्या भेंट करें अपने गुरु को?
गुरु पूर्णिमा पर गुरु को कोई भी शुद्ध और पवित्र वस्तु भेंट करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इससे आशीर्वाद और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। आप अपने गुरु को ये चीजें भेंट कर सकते हैं:
पंचांग या धार्मिक पुस्तकें
चंदन या रुद्राक्ष माला
वस्त्र या अंगवस्त्र
तांबे या पीतल का लोटा
फल और मिष्ठान्न
दीपक और पूजा सामग्री
इस दिन का महत्व:
मान्यता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने महाभारत और पुराणों की रचना की थी। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।