धर्म /अध्यात्म

परिवर्तनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए करें इन मंत्रों का जप, दूर होंगे सभी संकट

Parivartani Ekadashi 2025 :  हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल यह एकादशी 14 सितंबर, 2025 को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शयन मुद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे ‘परिवर्तनी’ कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।

क्यों है परिवर्तनी एकादशी इतनी खास?

परिवर्तनी एकादशी को ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत के साथ-साथ मंत्रों का जाप करना भी बेहद फलदायी माना गया है।

भगवान विष्णु के मंत्र, जिनका जाप करना है शुभ

परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अपने जीवन से सभी संकटों को दूर करने के लिए इन मंत्रों का जाप करें:

1. ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ यह भगवान विष्णु का सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से मन शांत होता है और सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

2. शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्।। लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्। यह मंत्र भगवान विष्णु के स्वरूप का वर्णन करता है। इसका जाप करने से हर तरह के भय और संकट से मुक्ति मिलती है।

3. ‘ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्’ यह विष्णु गायत्री मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

4. ‘ॐ विष्णवे नमः’ यह एक बहुत ही छोटा और प्रभावशाली मंत्र है। इसका जाप करने से जीवन में आने वाली हर बाधा दूर होती है और सफलता मिलती है।

पूजा विधि

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।

भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने व्रत का संकल्प लें।

पूजा स्थल पर एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।

भगवान को फूल, तुलसी के पत्ते, चंदन और भोग (फल, मिठाई) अर्पित करें।

दीपक और धूप जलाएं।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और ऊपर बताए गए मंत्रों का जाप करें।

दिनभर व्रत रखें। अगर आप निर्जल व्रत नहीं रख सकते, तो फलाहार ले सकते हैं।

शाम को पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद बांटें।

अगले दिन, यानी द्वादशी को, व्रत का पारण करें।